छोटे बजट बनाम बड़े बजट की फिल्में: भविष्य एवं सामाजिक संदर्भ
पेज 4 समाज में टैलेन्ट की कमी नहीं है लेकिन उनको खोजने का व्यवस्थित साधन आज उपलब्ध नहीं है। कॉरपोरेट हाउसों के पास रचनात्मक मैनेजरों एवं पारखी सलाहकारों की भयानक कमी है। इसके लिए फिल्म निर्माताओं को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। पटकथा लेखन सिखाने वाले स्तरीय संस्थान चाहिए। सिनेमा सोसाइटी आंदोलन को फिर से गतिशील करना चाहिए। इप्टा की तरह युगानुकुल कलाकारों का संगठन चाहिए। सिनेमा और समाज के जटिल रिश्ते पर शोध एवं डाक्युमेंटेशन को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। तभी भारत हॉलीवुड से प्रतियोगिता करने में सक्षम होगा। केवल गुणवत्ता ही वह कवच है जो मंदी के इस दौर में हिन्दी सिनेमा की रक्षा कर सकता है। मंदी का मौजूदा दौर हवा में उड़ने वालों को सबक सिखा रखा है और यथार्थ के कठोर धरातल पर ले आया है। ऐसा दौर अहंकार के मदमस्त हाथी को वश में करता है। जिन आम दर्शकों की सहायता से सिनेमा ने लगभग पौन सदी (1913 से 1993) तक का सफर तय किया उस वर्ग को मल्टीप्लैक्स ने हाशिये पर डाल दिया। ताली बजाने वाले इन दर्शकों के उन्माद के बिना सिनेमा का जादू अपना पूरा रहस्य उजागर नहीं करता। सिनेमा के जादू में यकीन करने वाले आम दर्शक ही इस खेल के असली सितारे हैं। यह दर्शक वर्ग साहसी है और अपने शौक की खातिर जोखिम उठा सकता है। मंदी के दौर में मल्टी प्लैक्सों के दाम घटाने पर पच्चीस शो को जुबली मानने वाले असली पच्चीस सप्ताह वाली जुबली देखेंगे और मंदी के दौर में कम फिल्मों के बनने के संकट का भी सार्थक मल्टीप्लैक्सों को खाली रहना पड़ेगा। सिनेमा में बहुत लंबे समय तक ऐसी फिल्में बनती रहीं जिसमें आम आदमी विपरीत परिस्थिति में किसी प्रेरणा से इतना शक्तिशाली हो जाता है कि वह अपने सभी शत्रुओं को हराता है। अमेरिका के पास अपनी मायथोलॉजी नहीं है। सुपर नायक की किंवदंती सामाजिक संरचना में आवश्यक होती है। सुपर नायक के पास दैवीय शक्तियां होती हैं और इस मायने में वह हमारी अवतारवाद की धारणां के नजदीक आता है। हॉलीवुड के प्रभाव में सुपर नायक फिल्में प्रारंभ हुई। महात्मा गांधी ने भी अपनी सभाओं का आरंभ भजन और कीर्तन से ही किया। भारत में भीड़ जुटाने के लिए यह आवश्यक रहा है। भारत की सबसे बड़ी शक्ति धर्म रहा है और सबसे बड़ी कमजोरी अंधविश्वास, कुरीतियां और पाखंड रहा है। अपनी अर्कमण्यता और आलस्य को धर्म का आवरण पहनाना पाखण्ड है।
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